kanchan singla

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ओ मेरी कलम ✍️

 एक लंबे अरसे के बाद,,
 मैं लौटी हूं तुम तक,,
 ओ मेरी कलम......
 तुम बिन थके, बिन रुके,,
 बस चलते ही जाना,,
 मेरी अंतिम सांसों तक,,
 चाहे छूटे दुनियां का साथ,,
 बस एक तुम रहना मेरे पास..।।
 
 मेरे दिल की आवाज़ को,,
 यहीं शब्दों में लिखती जाना,,
 जहां कम पड़ जाएं कुछ अक्षर तब,,
 तुम खुद ही बुन लेना उन,,
 आडी़ तिरछी रेखाओं को,,
 टूटे बिखरे अक्षरों को,, 
 कुछ अधूरे शब्दों को,, 
 उन ग़लत लगी मात्राओं को,,
 तुम यूहीं उन्हें जोड़ कर....
 बुन देना कोई कविता या कहानी,,
 जिसे पढ़ कर लगे की... 
 जैसे मैं लिख गई हूं खुद को,,
 या पढ़ रहीं हूं खुद को,,
 और कहीं बाकी रह गई,,
 इन अधूरे अल्फाजों में,,
 जिन्हें मैं कभी लिख नहीं पाई,,
 या फिर रह गए वे मेरे मन के,,
 किसी अंधेरे कोने में,,
 या फिर मिट गई स्याही में..।।
 
 ओ मेरी कलम....
 मैं अब जो लौटी हूं तुम तक,,
 साथ ना छोडूंगी अपनी अंतिम सांसों तक...!!

लेखिका - कंचन सिंगला

 
 

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8 Comments

Farhana ۔۔۔

14-Dec-2021 05:02 PM

Good

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Shrishti pandey

13-Dec-2021 11:56 PM

Nice one

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Niraj Pandey

13-Dec-2021 11:55 PM

बहुत ही बेहतरीन

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